दोस्ती का फर्ज
लघु कहानी - * दोस्ती का फर्ज*
महेश और ललन दोनो पुलिस विभाग में थे।दोनो बड़े ही दिलेर और बहादुर पुलिस ऑफिसर थे । उन दोनो ने सैकड़ों अपराधियों को कानून की पकड़ में लिया था और सलाखों के पीछे पहुंचाया था ।दोनो अलग अलग थानों में कार्यरत थे।मगर दोनो में काफी गाड़ी दोस्ती थी।एक से बढ़कर एक खतरनाक । मुजरिमो को सजा दिलवाने के चलते उन दोनो के दुश्मन भी बहुत थे।जीतने बहादुर थे उतने जी ईमानदार भी थे।उनकी ईमानदारी ही थी की दोनो अपनी तनख्वाह पर गुजारा करते थे। वर्ना दोनो को लाखो करोड़ों के ऑफर मिलते रहते थे। अगर दोनो चाहते थे अब तक करोड़ों रुपए की संपति बना चुके होते।लेकिन उनका सादा जीवन एक मिसाल था।दोनो पुलिस विभाग में एक मिसाल थे।सब लोग ईमानदारी और बहादुरी के रूप में दोनो का उदाहरण देते थे।
एक दिन महेश का जन्म दिन था ।उसने अपने थाना के कई पुलिस अधिकारियों को निमंत्रण दिया था ।अपने दोस्त ललन को भी बुलाया था।
केक कटने के बाद ।सबको खाने पीने की पार्टी शुरू हुई।
सभी अभी दो चार कौर ही खाए होंगे की बहार गोलियों के चलने की आवाज आई ।सब लोग तुरंत खाना छोड़कर अपनी रिवाल्वर निकाल कर अपनी अपनी पोजीसन संभाल लिया।महेश ने अपनी खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो चौंक गया।
बाहर सौ की संख्या में अपराधी आधुनिक हथियारों से लैस चारो तरफ फैले हुए थे।जबकि घर के अंदर कुल बीस पुलिस के जवान और ऑफिसर थे।तभी एक गोली आकार एक हवलदार के एक बांह में आकर लगी।वो चीख मारकर अपना कंधा पकड़कर बैठ गया।महेश ने तुरंत उसे अपने प्राथमिक उपचार बॉक्स से पट्टी निकालकर बांध दिया और सबसे कहा चुकी हमला मेरे घर पर हुआ है।मैं आप लोगो को खतरे में नही डाल सकता ।आप लोग जख्मी हवलदार को लेकर घर के पिछले दरवाजे से निकल जाए। और दोनो थाना में अतिरिक्त जवान मिलाकर कुल पचास होंगे ।थाना की सुरक्षा हेतु आधे जवानों को पूरी तैयारी के साथ भेजे और जिला पुलिस मुख्यालय को तुरंत हमले की सूचना दे।एक ऑफिसर ने दोनो थानों को तुरंत सतर्क किया और पुलिस जवान भेजने को कहा।पुलिस कंट्रोल रूम भी सूचना दे दी गई।
मगर कोई भी वहा से जाने को तैयार नहीं था।महेश ने बड़ी मुश्किल से कुछ लोगो को धीरे से बाहर भेज दिया ताकि बाहरी सुरक्षा दिलाने में मदद मिल सके।लेकिन उसका दोस्त ललन वहा से किसी कीमत पर जाने को तैयार नहीं हुआ ।दोस्ती किया है तो मरते दम तक निभायेंगे।चाहे भले ही मेरी जान चली जाए मैं यहां से नही जाऊंगा।जबतक सांस चलेगी बदमासो सेl लड़ता रहूंगा।
घर में अब कुल पांच लोग बचे थे एक महेश का कंप्यूटर ऑपरेटर ,दो घर के स्टाफ और दो महेश और ललन ।
महेश ने एक खिड़की से मोर्चा संभाल लिया और ललन ने दुसरी खिड़की से गोलियों का जवाब देने लगा।पूरे क्षेत्र में गोलियों की धाय धाय आवाज गूंजने लगी थी।महेश की गोलियां खतम होने लगी थी।लेकिन उसने कई बदमाशो को मार गिराया था। तभी खिड़की का कांच तोड़ते हुए एक गोली उसके कंधे छेदते हुए निकल गई।कंधे से खून निकलने लगा।उसे काफी दर्द भी हो रहा था। ललन ने अपने दोस्त को उसके कमरे में खींच लिया ।एक स्टाफ से कहा तुम इसके कंधे में पट्टी बांध दो।और इसका ख्याल रखो तबतक मैं मोर्चा संभालता हूं।
महेश ने उठकर उसके साथ जाना चाहता था लेकिन ललन ने उसे रोक दिया।
वो लपकर कंप्यूटर ऑपरेटर के पास पहुंचा जो गोलियां चलाने में बिजी था ।
हमलोग ज्यादा देरी तक इनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे।ललन ने कहा ।पुलिस की फोर्स भी आने ने देर लगेगी।।मैं महेश को गोली लगने के बारे में थाना को रिपोर्ट कर देता हूं ।
तुम बताओ घर में ड्रोन है क्या।यदि है तो क्या बिना रोशनी किए अंधेरे में उन्हें पाओगे।
उसने कहा जी सर मैं उड़ा सकता हूं।ड्रोन कितना वजन उठा सकता है।उसने पूछा ।सर लगभग पच्चीस किलो उठा सकता है।
ठीक है ।क्या तुम मोबाइल या लैपटॉप से उसे ऑपरेट कर सकते हो।।जी सर लैपटॉप से ऑपरेट कर लूंगा।
क्या घरमे लाइट गन है जिसके फायर करने से रोशनी हो ।
जी सर एक गन है।
बहुत खूब ।क्या बुलेट प्रूफ जैकेट है ।
जी सर है ।
ठीक है फौरन खुद पहन लो और मुझे भी दो ।ड्रोन में बम लोड करो।चलो छत पर मैं लाइट गन से आसमान में फायरिंग करूंगा और तुम उसकी रोशनी में बदमासो पर ड्रोन से बम गिराते रहना।ध्यान रहे ड्रोन पर किसी की नजर न पड़े।
एक स्टाफ से कहा तुम जगह बदलकर गोलियां चलाते रहो ।ध्यान फायर कर तुरंत जगह बदल लेना।
ललन का प्लान कामयाब रहा उसने लगभग साठ बदमाशो को मार गिराया। अभी वो अपनी जगह बदल ही रहा था तभी एक गोली उसके पैरो में आकर लगी और धंस गई।चीखते चीखते रह गया।अपने दर्द को उसने अपने दांतो से होठों को दबाकर सह लिया।
छत पर लड़खड़ा गया।तभी सायरन बजाते हुए पुलिस फोर्स मौके पर पहुंच कर सारे बदमाशो को काबू में लिया।
हमला एक ड्रग्स माफिया ने करवाया था जिसका करोड़ों का माल महेश ने पकड़ा था और दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर लिया था।
महेश और ललन दोनो को अस्पताल पहुंचाया गया।महेश ने कहा यार तुमने दोस्ती के नाम पर अपनी जान जोखिम में क्यों डाली।तुम्हे कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता।
वो दोस्त ही क्या जो दोस्त के दुख में काम न आए ललन ने मुस्कुराते हुए कहा।
लेखक
श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
Mohammed urooj khan
11-Nov-2023 11:27 AM
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